मखाना की खेती पारंपरिक रूप से स्थिर मीठे पानी के तालाबों में की जाती है। मखाना उत्पादन में भारत वैश्विक स्तर पर अग्रणी है, जहाँ दुनिया की 90% मखाना की आपूर्ति भारतीय राज्य बिहार से होती है। दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, सहरसा, कटिहार, सुपौल, किशनगंज और अररिया जैसे जिले मखाना उत्पादन में सक्रिय हैं। मखाना अनुकूल जलवायु परिस्थितियों और उपजाऊ मिट्टी वाले बिहार राज्य की विरासत है।
भारत में मखाना की खेती के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 15,000 हेक्टेयर है, जिससे सालाना लगभग 1,20,000 मीट्रिक टन कच्चे बीज प्राप्त होते हैं। मखाना उगाने का समय मार्च से अगस्त तक होता है, उत्तर भारत में मानसून से फसल को लाभ होता है, बीज की कटाई सितंबर से शुरू होकर जनवरी तक चलती है।
दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र (NRCM) मखाना की पैदावार बढ़ाने के साथ- साथ इसे कम श्रमसाध्य कार्य बनाने के लिए आधुनिक तकनीक विकसित कर रहा है। परंपरागत रूप से स्थानीय आदिवासी मजदूर तालाब में गोता लगाते हैं और नीचे से बीज इकट्ठा करते हैं। हालाँकि, यह शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य है। आज तकनीक और आधुनिक खेती की तकनीकें मखाना के बीजों को 1.5 फीट उथले तालाब में उगाने की अनुमति देती हैं, जिससे गहरे प्राकृतिक तालाबों के विपरीत इसे प्रबंधनीय बनाया जा सकता है। इसे फील्ड कल्टीवेशन सिस्टम कहा जाता है। इस नई विधि ने मखाना की उपज 11-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कर दी है।
एनआरसीएम (NRCM) मखाना की खेती में प्रगति के लिए काफी सक्रिय रहा है। उन्होंने वर्ष 2012 से 2023 के बीच 3000 से अधिक किसानों को उन्नत खेती तकनीकों में प्रशिक्षित किया है। उन्होंने महिलाओं के लिए क्षमता निर्माण, उन्हें सशक्त बनाने और ग्रामीण आजीविका बढ़ाने में योगदान देने पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
प्राकृतिक गहरे तालाबों से खेत की खेती प्रणाली में इस बदलाव ने क्षेत्र में सामाजिक- आर्थिक परिवर्तन को जन्म दिया है। इसने न केवल खेती के प्रयासों और समय को कम किया है, बल्कि इसने अंतर- फसल को भी बढ़ावा दिया है जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार हुआ है और किसानों की आय में वृद्धि हुई है। इसने रोजगार के अवसरों को भी बढ़ाया है, खासकर स्थानीय महिलाओं के लिए क्योंकि वे आसानी से उथले तालाबों में काम कर सकती हैं जिनके लिए गोताखोरी या तैराकी कौशल की आवश्यकता नहीं होती है। इन नई विधियों ने लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों, बेहतर ग्रामीण आजीविका, खाद्य सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को जन्म दिया है।
असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, त्रिपुरा राज्य भी प्रक्रिया के मशीनीकरण के कारण मखाना के उत्पादक के रूप में उभर रहे हैं।